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नोएडा प्राधिकरण में विदाई के समय बाबू के बोल ने खोली अफसरों की पोल

नोएडा प्राधिकरण में विदाई के समय बाबू के बोल ने खोली अफसरों की पोल

नोएडा, 1 सितंबर।

बात 2 दिन पुरानी है नोएडा प्राधिकरण के कुछ कर्मियों का विदाई समारोह चल रहा था उस मौके पर कई अफसर भी मौजूद थे तभी मंच संचालन कर रहे अधिकारी ने कहा कि सेवानिवृत होने वाले लोगों में कोई बोलना चाहता है तो बोल सकता है।

लंबी सेवा के बाद सेवानिवृत्ति के दिन शायद ही कोई ज्यादा बोलना चाहता हो लेकिन ऐसा नहीं तभी उनमें से एक बाबू उठकर मंच पर आए और उन्होंने बोलना शुरू किया जैसे-जैसे वह बोलते जा रहे थे। अफसर में दहशत व शर्मिंदगी पैदा होने लगी। यह नजारा देखकर कुछ अधिकारियों ने गर्दन नीचे कर ली।

अब सुनिए उस बाबू ने ऐसा क्या बोला कि अधिकारियों को गर्दन नीचे करनी पड़ी हो दरअसल उक्त बाबू ने अपने कार्यकाल के दिनों को याद करते हुए मौजूदा परिस्थितियों को अपने सभी सहकर्मियों के साथ साझा किया उन्होंने कहा कि इस समय नोएडा प्राधिकरण के अंदर जो कर्मचारी काम कर रहे हैं और जो अधिकारी काम कर रहे हैं उनकी कार्यशैली देखकर मैं हैरान हूं क्योंकि चाहे कितना ही बड़ा डिसीजन हो फाइल पर बाबू जो लिखना है आईएएस अधिकारी भी इस पर मुहर लगाते है वह अपनी तरफ से कोई दिमाग नहीं लगाते कि क्या बाबू ने सही लिखा है।

उदाहरण के रूप में विधि विभाग की बात करें विधि विभाग का सीधा ताल्लुक कोर्ट से होता है और कोर्ट में वह केस जाते हैं जो विभिन्न विभागों से विधि विभाग में आते हैं उनकी पैरवी नोएडा प्राधिकरण के विधि विभाग को करनी होती है मगर यह क्या प्राधिकरण ने कोर्ट में विशेष वरिष्ट्ठ वकीलों को तैनात किया हुआ है जब वह विशेष वकील अपनी कोई टिप्पणी या कोई भी बात लिखकर नोएडा प्राधिकरण के विधि विभाग को भेजते हैं तो विधि विभाग के संबंधित अधिकारी उस पर अपना कोई नजरिया ना रखते हुए उसको सीधे संबंधित विभाग को भेज देते हैं जिस विभाग में वह फाइल जाती है उसे विभाग के वरिष्ठ अधिकारी भी उसे पर कोई टीका टिप्पणी नहीं करते और वह फाइल सीधे बाबू के पास पहुंच जाती है तब बाबू को उस पर जो लिखना है वही बात वरिष्ठ अधिकारियों से होते हुए सीधे कोर्ट तक जाती है यानी इस समय कई यह ऐसे मामले हैं जिनमे प्राधिकरण की हार हुई है उसे पर कोई मंथन नहीं कर रहा है।

इसी तरह के मामले लगभग हर विभाग में है यह बात उस दिन की है जिस दिन सेवानिवृत्ति के समय बाबू लगातार बोले जा रहा था और वह अपने मन की भड़ास सामने बैठे अपने सहकर्मियों के साथ शेयर कर रहा था। जब कार्यक्रम सम्पन्न हुआ तब एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार करते हुए यहां तक कह दिया कि बात है तो कड़वी मगर सच है।

तभी एक बात और सामने आई कि नोएडा के विभिन्न सर्किलों में विभिन्न परियोजनाएं चल रही हैं सभी के एस्टीमेट तैयार किया जा रहे हैं उन एस्टीमेट को कौन तैयार करता है तो पता लगा कि ज्यादातर कार्य संविदा कर्मी कर रहे हैं और वरिष्ठ अधिकारी जब अपने अधीनस्थ अधिकारी को किसी कार्य में गलती पर डांटे हैं तब वही अधिकारी संविदा पर कार्य करने वाले अधिकारी पर दबाव बनाकर उसे ठीक करने को बोलता है यानी जो काम हो रहा है वह या तो कंसलटेंट कर रहे हैं या संविदा कर्मी कर रहे हैं। स्थाई कर्मी अपनी तरफ से कोई माथा- पच्ची नहीं करते और वह अपने पास आई किसी भी चिट्ठी का जवाब देना पसंद नहीं करते। यही नहीं जब तक कोई महत्वपूर्ण पत्र पर मुख्य कार्यपालक अधिकारी के स्तर से जानकारी नहीं मांगी जाती तब तक वह पत्र डंप में रहता है उसे पर विभागीय अधिकारी भी कोई संज्ञान नहीं लेते हैं।

खास बात यह है कि वित्त विभाग से जुड़े हुए कई मामलों में ऐसा देखा गया है की ना तो प्राधिकरण अपने बकाया को लेकर किसी आवंटी को पत्र भेजता है और ना ही उसे कोई नोटिस आदि दिया जाता है जब वह अपने काम के लिए प्राधिकरण के दफ्तर में आता है तभी फाइल खंगाल कर उसे बताया जाता है कि आपका बकाया इतना है मतलब प्राधिकरण अपनी यह जिम्मेदारी भी नहीं निभाता की आवंटी को वह कम से कम एक बार सूचना तो दे वह अपने कार्यालय में फाइल के अंदर पेनल्टी पर पेनल्टी लगाता जाता है और उसे कम करने की एवज में वसूली करता है ऐसे सैकड़ो किस्से प्राधिकरण की कार्यशैली में शामिल हैं।

बाबू की विदाई के समय कही गई बातें कई अधिकारियों को आज भी मन ही मन महसूस हो रही है तो यह था बाबू की विदाई के समय का एक ऐसा किस्सा जिसने प्राधिकरण के वर्किंग स्टाइल की पोल खोल दी है।

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