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वर्षा भम्भाणी मिर्जां एजेंसी: पेट्रोल की ऊंची कीमतों के बीच कोई धनाढ्य ही किसी बाइक रैली का आयोजन कर सकता है। आज की तारीख में सरकार से बड़ा कुबेर कौन है? पूरा देश जब पैसे व बूंदें गिन-गिनकर पेट्रोल और दूरी के खर्च का हिसाब लगाकर काम चला रहा हो, वहां तिरंगा बाइक रैली किसी आम आदमी के जुनून की उपज तो हो नहीं सकती और न ही वह उसके दिनों-दिन के संघर्ष का प्रतिनिधित्व करती है। ऐसा क्यों होता जा रहा है कि देश का जनसाधारण नाना प्रकार की तकलीफों में हैं और नेतागण लगातार प्रतीकात्मक राजनीति करने से ही बाज नहीं आ रहे हैं? यह लोकतंत्र का अमृत काल होना चाहिए। अब गोरों की हुकूमत नहीं है जो हमें प्रतीकों का सहारा लेना पड़े। दूसरे, इसके नेता एक-दूसरे को जलील करते हुए ऐसे बयान देते हैं जैसे इन्हें वोट जनता ने काम के लिए नहीं बयान देने के लिए दिये हों। इस तिरंगा बाइक रैली में शामिल होने का न्यौता विपक्ष को भी दिया गया था। जब स्वीकृति नहीं आई तो उसे श्भगौड़ाश् और श्गद्दारश् जैसे शब्दों से नवाज दिया गया। विपक्ष जो एक-एक कर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के पंजों में कसता जा रहा है, उसके लिए बाइक रैली का न्यौता ऐसा ही था जैसे बच्चे की पिटाई के बाद उससे उम्मीद की जाए कि वह सुंदर सी ड्रॉइंग बनाने के लिए सबके बीच आ जाए। इस जबरदस्ती के श्रंग भरो अभियानश् में विपक्षी पार्टियां शामिल नहीं हुईं और ईडी के दुरुपयोग के खिलाफ सत्रह विपक्षी दलों ने एक होकर उस पत्र पर दस्तखत किए हैं जिसमें उन्होंने न्यायालय द्वारा ईडी की शक्तियां बरकरार रखने पर चिंता जताई है। 27 जुलाई को ईडी के खिलाफ दायर 250 याचिकाओं के जवाब में सर्वोच्च न्यायालय ने ईडी की वैधता को जारी रखा है। पिछले आठ वर्षों में 3010 मामलों में से केवल 260 मामलों में दोष सिद्ध हुआ है। ठीक राजद्रोह कानून की तरह जिसमें दोष साबित होने की दर एक फीसदी से भी कम है। राजद्रोह कानून रद्द हुआ लेकिन ईडी अभी बना हुआ है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के संशोधन को, 2005 में मनमोहन सिंह सरकार द्वारा इसमें से पुलिस की भूमिका हटा दिए जाने को और 2019 के नरेंद्र मोदी सरकार के सभी संशोधनों को बहाल रखा है। अब विपक्ष दलों का मानना है कि वर्तमान सरकार बदले की भावना से काम कर रही है। पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और झारखंड में ईडी चुन-चुनकर नेताओं को हिरासत में ले रही है। बुधवार को दिल्ली में न केवल स्वतंत्रता आंदोलन में ब्रिटिश शासन का विरोध करने वाले अखबार श्नेशनल हेराल्डश् का दफ्तर सील कर दिया गया बल्कि कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और सोनिया गांधी के निवास की भी बेरिकेडिंग कर दी गई। यह सुरक्षा घेरा न होकर नजरबंदी का घेरा मालूम होता है। ईडी की असीमित शक्तियां इसे व्यक्ति को दोष सिद्ध होने से पहले ही सजा दे देने का काम कर देती हैं। इन सत्रह विपक्षी दलों में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, समाजवादी पार्टी आदि शामिल हैं। राष्ट्रपति चुनाव से अलग यह नई एकता है। विपक्ष यहां उम्मीद कर रहा है कि सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला लंबे समय के लिए नहीं होगा और एक बड़ी पीठ जल्द ही इसकी सुनवाई करेगी। मनी लॉन्डरिंग यानी काले धन को सफेद करने का शोर-गुल देश के लिए नया नहीं है। जुमला बहुत लोकप्रिय है जिसमें विदेशी बैंकों में जमा धन की वापसी के बाद 15-15 लाख रुपये हर देशवासी के खाते में आने वाले थे। ऐसा कुछ नहीं हुआ। आतंकवादियों और बड़े आर्थिक अपराधियों के बजाय फिलहाल निशाना सिर्फ विपक्ष है। अब सीबीआई नहीं श्ईडी आई, ईडी आईश् का हल्ला है। यह सच है कि पश्चिम बंगाल सरकार के मंत्री और ममता बैनर्जी के बेहद करीबी के यहां छापे बताते हैं कि ईडी को वे राज्य ज्यादा पसंद आते हैं जहां भारतीय जनता पार्टी सरकार में नहीं है। कैश भी उन्हीं राज्यों में मिल रहा है। झारखंड के मुख्यमंत्री ने विधायक खरीदने की बात कही है लेकिन ममता चुप हैं। मंत्रिमंडल का विस्तार कर चुकी हैं। इतनी बड़ी रकम को न तो प्लांट करने वाला बताया गया और न ही कोई आक्रामक तेवर दिखाए। इस फायरब्रांड नेता को आग कैसे और क्यों लगी यह पता अब तक नहीं चला है। कम से कम जनता ने उनसे कुछ नहीं सुना है। राहुल गांधी से पचास घंटे और सोनिया गांधी से तीन दिन तक की पूछताछ के बाद ईडी उनके घरों की घेराबंदी कर चुकी है और आशंका व्यक्त की जा रही है कि वह उन्हें गिरफ्तार भी कर सकती है। परिदृश्य में यह भी है कि राहुल गांधी की कर्नाटक रैली में भारी भीड़ जुटी और कांग्रेस ने 5 अगस्त का दिन महंगाई और बेरोजगारी पर देशव्यापी प्रदर्शन के लिए चुना है। दरअसल ईडी की ताकत में ही व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन भी छिपा है- कहीं-कहीं तो न्यायिक शक्तियों को भी चुनौती देता हुआ। यह कार्रवाई मानव अधिकारों का हनन करने वाली भी है। पूछताछ में दिया हर बयान अंतिम सच माना जाता है। उसकी संपत्ति कुर्ककी जा सकती है। एक सिविल सेवक को न्यायाधीश जैसी शक्तियां हासिल हैं। पकड़े जाने के बाद अगर कोई निर्दोष है तो वह भी उसी को साबित करना है। जमानत नहीं मिलती क्योंकि आरोप बताए ही नहीं जाते हैं। सवाल उठता है कि आखिर ऐसे कानून की जरूरत क्या थी? जरूरत 1998 के आसपास संयुक्त राज्य संघ ने बताई थी और अपने सदस्य देशों से साझा की थी। इसी बीच अमेरिका के ट्विन टॉवर (9ध्11) और भारतीय संसद पर आतंकवादी हमले हुए। बेशक आतंकवादियों और आर्थिक घोटालेबाजों के लिए ये शक्तियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनी लॉन्डरिंग कानून का मुकाबला करती हैं, लेकिन नया और अभूतपूर्व यह है कि अब इस तोप का मुंह विपक्ष की ओर कर दिया गया है। ईडी की शक्तियां अपार हैं जिसके बारे में विपक्ष का कहना है कि इसके ताजा संशोधनों को 2019 में चोर दरवाजे से लाया गया। वित्त विधेयक के साथ यह बिना किसी बहस के ध्वनिमत से पारित कराया गया। इसी में वह धारा भी सिरे से गायब कर दी गई जिसके तहत कुर्की से पहले रिपोर्ट मजिस्ट्रेट के सामने पेश करनी होती थी। इस माहौल में सत्तापक्ष विपक्ष से तिरंगा रैली में शामिल होने की उम्मीद करता है तो वह थप्पड़ जड़कर हंसने की अपेक्षा करने से ज्यादा कुछ नहीं है। आजादी के अमृत महोत्सव में होना तो यह चाहिए था कि सभी नेता मिलकर देशवासियों की मुश्किलें हल करने का संकल्प लेते। माफी मांगते कि हम इतने सालों से आपके राज्यों पर काबिज हैं लेकिन कुछ नहीं कर पाए। आप अब तक सड़क, बिजली, पानी और खराब चिकित्सा व्यवस्था से घिरे हैं। इसी जनता ने कोरोना में प्रधानमंत्री के कहने पर थाली और ताली भी बजाई थी, अमृत महोत्सव की पावन बेला में तिरंगा भी लहरा देगी क्योंकि उसे अपने मुल्क से प्रेम है लेकिन वह त्रस्त है। कीमतों ने उसकी कमर तोड़ रखी है। उसकी कमाई खर्च की तुलना में बहुत कम है। सांसद मनोज कुमार झा ने नयनसुख की तकलीफ सुनाई कि वह सांसद के घर की रखवाली करता है लेकिन सत्ता पक्ष को सब्जियां बहुत ही सस्ती मालूम हो रही हैं, हर घर खुशहाल है। ऐसा बोलने वाले सांसद पता नहीं कब झोला लेकर निकलते होंगे लेकिन बयान जरूर देते हैं। ये दोनों अपनी-अपनी भूमिकाएं निभाते हुए पास हो जाते हैं लेकिन जनता फेल हो रही है- इन्हें चुनने में भी और अपने सुख चुनने में भी। इंकलाबी शायर फैज अहमद फैज की यह नज्म अंधेरे में भी रोशनी दिखा रही है- दर्द थम जाएगा गम न कर गम न कर यार लौट आएंगे, दिल ठहर जाएगा गम न कर गम न कर दिन निकल आयेगा गम न कर गम न कर अब्र खुल जाएगा रात ढल जाएगी गम न कर गम न कर रुत बदल जाएगी गम न कर गम न कर। (लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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