pin uplucky jetмостбет кзmostbet casino1winaviatorpin up az1xbet lucky jetpin up bettingparimatchmostbetmostbet casino kz4rabetonewinaviator mostbet4a betmostbet indiapin-up kzmosbet casinomosbet1win1 win indialucky jet crashpinuppin uppinup1 win4rabet1win loginmostbet kzluckyget1win apostamostbet casino1 win azmosbet casino4x bet1win aviatormostbet1win1win aviatorlucky jet online1 win casinomostbetpinup kzparimatch1win casinopin up india1 winmostbet azpin up casinomostbet

ईडी के एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर

संवाददाता: एक समय था जब ईडी के निशाने पर आम तौर पर उद्योगपति ही रहते थे लेकिन धीरे-धीरे नेता और नौकरशाह भी उसकी जांच के दायरे में आते गए। आज ऐसे नेताओं और नौकरशाहों की गिनती करना कठिन है जो ईडी की जांच का सामना कर रहे हैं इस समय पश्चिम बंगाल से लेकर दिल्ली तक प्रवर्तन निदेशालय की चर्चा है। और इस शिकंजे में कई विपक्षी दलों के नेता हैं। नाम भी काफी बड़े-बड़े हैं, मसलन कांग्रेस की सोनिया गांधी, राहुल गांधी से लेकर बंगाल में पूर्व मंत्री पार्थ चटर्जी, नेशनल कांफ्रेंस नेता फारूक अब्दुल्ला, आम आदमी पार्टी के नेता सत्येन्द्र जैन से लेकर महाराष्ट्र में एनसीपी नेता अनिल देशमुख, नवाब मलिक जैसे विपक्षी दलों की लंबी फेहरिस्त है। ईडी ने जुलाई 2005 ये लेकर मार्च 2022 तक लगभग तीन हजार से अधिक तलाशी,छापेमारी और पॉच हजार के लगभग केस रजिस्टर्ड कर चुकी है। लगभग 23 मामलों में सजा भी हो चुकी है। इधर एक और चौकाने वाला आंकडा यह कि मोदी सरकार के आने के बाद ईडी काफी तेजी से कार्रवाई करती नजर आ रही है। 2016 से लेकर फरवरी 2022 तक के आकड़े इसके गवाह है। इस अवधि में लगभग तीन हजार केस में ईडी 85,865 करोड़ की सम्पत्ति अटैच कर चुकी हैं। जिसमें अभी मंमता सरकार के मंत्री और आप सरकार के मंत्री का नाम नही शामिल है।उच्चतम न्यायालय ने प्रिवेंशन आफ मनी लांड्रिंग एक्ट-पीएमएलए के तहत प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी को मिले अधिकारों के खिलाफ कई नेताओं समेत अन्य लोगों की ओर से दायर दो सौ से अधिक याचिकाओं का निपटारा करते हुए जिस तरह इन अधिकारों को उचित ठहराया, वह इस जांच एजेंसी को बल प्रदान करने और साथ ही अपनी काली कमाई को सफेद करने की कोशिश में लिप्त तत्वों को हतोत्साहित करने वाला है। ईडी को जो बल सुप्रीम कोर्ट से मिला है उसके चलते विपक्ष ही नही बल्कि सत्ता पक्ष के कतिपय सफेदपोश और काले धन के धंधे में लिप्त नौकरशाहों के लिए खतरे की घंटी है। यह किसी से छिपा नहीं कि काले धन का काला धंधा किस तरह बढ़ता जा रहा है और इस धंधे में किस तरह नेता और नौकरशाह भी लिप्त हैं ? इसका ताजा उदाहरण बंगाल के हटाए गए वरिष्ठ मंत्री पार्थ चटर्जी हैं, जिनकी करीबी अर्पिता मुखर्जी के दो फ्लैटों से करीब 50 करोड़ रुपये की नकदी के साथ सोना, विदेशी मुद्रा के अतिरिक्त जमीन-जायदाद के कई दस्तावेज मिले हैं। इस समय ईडी के एक्शन की सबसे ज्यादा चर्चा बंगाल में पूर्व मंत्री पार्थ चटर्जी और उनकी करीबी अर्पिता मुखर्जी पर हो रही है कार्रवाई को लेकर है। हालात ऐसे हो गए हैं कि ममता बनर्जी को अपने बेहद करीबी पार्थ चटर्जी को न केवल मंत्री पद से हटाना पड़ा है बल्कि वह पार्टी से भी निलंबित हो गए हैं। उधर नेशनल हेराल्ड केस में ईडी की पूछताछ अब गांधी परिवार तक पहुंच चुकी है। ईडी पहले राहुल गांधी और अब कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से पूछताछ कर रही है। मामला यंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड नाम की नई कंपनी और एजेएल को हुई डील का है। यंग इंडिया में सोनिया गांधी और राहुल गांधी सहित मोतीलाल वोरा, सुमन दुबे, ऑस्कर फर्नांडिस और सैम पित्रोदा को निदेशक बनाया गया था। नई कंपनी में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पास 76 प्रतिशत शेयर थे जबकि बाकी के 24 प्रतिशत शेयर अन्य निदेशकों के पास थे। इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने इस कंपनी को 90 करोड़ रुपए बतौर कर्ज दिया। बाद में यंग इंडिया ने एजेएल का अधिग्रहण कर लिया। जिसको लेकर मनीलांड्रिंग का केस चल रहा है।इसी तरह आईएनएक्स मीडिया केस में ईडी ने साल 2017 में पूर्व वित्त मंत्री पी.चिदंबरम के बेटे कार्ती चिदंबरम के खिलाफ केस दायर किया था। जांच एजेंसियों का दावा है कि सन 2007 में जब चिदंबरम वित्त मंत्री थे तब उन्होंने पीटर मुखर्जी और इंद्राणी मुखर्जी की कंपनी आईएनएक्स मीडिया को मंजूरी दिलाई। इसके बाद कंपनी में कथित रूप से 305 करोड़ का विदेशी निवेश आया। मात्र 5 करोड़ के निवेश की अनुमति मिली थी लेकिन आईएनएक्स मीडिया में 300 करोड़ से अधिक का निवेश हुआ। आरोप है कि इस डील में चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम ने रिश्वत ली थी। नेशनल कांफ्रेंस के प्रमुख और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला पर भी ईडी ने पूरक आरोप पत्र दायर कर दिया है। मामला जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन में हुए घोटाले का है। इस मामले में फारुक अब्दुल्ला और दूसरे आरोपियों से कई बार पूछताछ हो चुकी है। मामला 2002 से लेकर 2012 के बीच का है। जिस वक्त घोटाला हुआ, उस वक्त फारूक अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष और राज्य के मुख्यमंत्री थे। इस दौरान केन्द्र सरकार ने जम्मू -कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन के जरिए राज्य में खेल को बढ़ावा देने के लिए113 करोड़ रुपये का फंड मुहैया कराया गया था। लेकिन आरोप है कि उस फंड में बड़ी राशि का कहीं और इस्तेमाल किया गया। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री नवाब मलिक के खिलाफ ईडी ने 5 हजार पेज की चार्जशीट दायर कर रखी है। यह मामला डॉन दाऊद इब्राहिम के परिवार से जमीन खरीदने से जुड़ा है। प्रवर्तन निदेशालय ने विशेष पीएमएलए अदालत में आरोप पत्र पेश हुआ था और मलिक को 23 फरवरी को ईडी ने गिरफ्तार किया था, फिलहाल वे मुंबई की आर्थर रोड जेल में बंद हैं। मलिक पर दाऊद इब्राहिम के सहयोगियों हसीना पारकर, सलीम पटेल और सरदार खान के साथ मिलकर मुंबई के कुर्ला में संपत्ति को हड़पने के लिए एक आपराधिक साजिश रचने का आरोप है। इसके अलावा मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामले में मलिक के खिलाफ भी जांच हो रही है। जुलाई में ईडी ने आप नेता और दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की है। ईडी का मामला भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत सीबीआई द्वारा 2017 की एफआईआर पर आधारित है। सीबीआई की शिकायत में कहा गया है कि जैन चार कंपनियों को मिले फंड के स्रोत के बारे में नहीं बता सके, जिसमें वह एक शेयरधारक थे। इस साल अप्रैल में, ईडी ने सत्येंद्र जैन और उनके रिश्तेदारों से कथित रूप से जुड़ी कंपनियों की अचल संपत्तियों को अस्थायी रूप से कुर्क किया था। दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येन्द्र जैन और बंगाल के मंत्री पार्थ चटर्जी फिलहाल ईडी के शिकंजे में है। काला धन अर्जित करने वालों पर लगाम लगाने के लिए पीएमएलए वर्ष 2002 में लाया गया था, ताकि भारत अपनी वैश्विक प्रतिबद्धता के तहत काले धन को सफेद करने के तौर-तरीकों पर रोक लगा सके। यह कानून 2005 में मनमोहन सरकार सत्ता में लागू हुआ। इसमें समय-समय पर संशोधन हुए। एक संशोधन पी. चिदंबरम वित्त मंत्री रहते भी हुआ। बाद में वह और उनके बेटे ईडी की जांच के दायरे में आए। उक्त संशोधन से ईडी की शक्तियां बढ़ीं। निः संदेह मनमोहन सरकार के समय ईडी उतनी सक्रिय नहीं थी, जितनी मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद दिख रही है, लेकिन इसके आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि इस केंद्रीय जांच एजेंसी का दुरुपयोग किया जा रहा है, क्योंकि उसकी ओर से जब्त की गई संपत्ति यही बताती है कि काले धन को सफेद करने का सिलसिला तेज हुआ है। ईडी अब तक एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति जब्त कर चुकी है। ईडी ने कुछ संपत्ति की नीलामी कर बैंकों को वापस भी की है। एक समय था, जब ईडी के निशाने पर आम तौर पर उद्योगपति ही रहते थे, लेकिन धीरे-धीरे नेता और नौकरशाह भी उसकी जांच के दायरे में आते गए। आज ऐसे नेताओं और नौकरशाहों की गिनती करना कठिन है, जो ईडी की जांच का सामना कर रहे हैं।ईडी ने जिस तरह 2019-20 में 28 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की, उससे यही पता चलता है कि काला धन बटोरने वाले किस तरह बाज नहीं आ रहे हैं। इन स्थितियों में यह आवश्यक हो जाता है कि ईडी की सक्रियता कायम रहे। जो लोग ईडी के अधिकारों के खिलाफ उच्चतम न्यायालय पहुंचे थे, उनकी एक शिकायत यह थी कि इस एजेंसी को तलाशी, जब्ती और गिरफ्तारी के मनमाने अधिकार दे दिए गए हैं। उच्चतम न्यायालय इस दलील से सहमत नहीं हुआ। उसने इस दलील को भी खारिज कर दिया कि औपचारिक शिकायत के बगैर ईडी को किसी को गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए। इसी तरह शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ताओं की इस दलील को भी सही नहीं माना कि खुद को बेगुनाह साबित करने का दायित्व अभियुक्त पर नहीं होना चाहिए। वास्तव में यदि किसी के पास आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक अकूत संपत्ति मिली हो तो यह सिद्ध करने की जिम्मेदारी उसी पर होनी चाहिए कि उसके पास इतनी संपत्ति कहां से आई ?उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद यह आशा की जाती है कि ईडी जिन तमाम मामलों की जांच कर रही है, उनमें तेजी आएगी और इस तरह के राजनीतिक स्वर थमेंगे कि मोदी सरकार ईडी का मनमाना इस्तेमाल कर रही है। इसका कारण नेशनल हेराल्ड मामले में राहुल गांधी और सोनिया गांधी से ईडी की पूछताछ करना है। काला धन हासिल करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी ही चाहिए, क्योंकि खुद उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि मनी लांड्रिंग न केवल देश के सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को प्रभावित करती है, बल्कि आतंकवाद और ड्रग्स तस्करी जैसे अपराधों को भी बढ़ावा देती है। जो यह आरोप लगा रहे हैं कि ईडी के कारण लोकतंत्र का गला घुट रहा है, वे यह समझें तो बेहतर कि लोकतंत्र का गला अकूत रूप में जुटाए गए काले धन से भी घुट रहा है। आज यदि देश की प्रगति अपेक्षित गति से नहीं हो रही है तो इसका एक बड़ा कारण नेताओं और नौकरशाहों की ओर से किया जाने वाला भ्रष्टाचार भी है। यह किसी से छिपा नहीं कि तमाम नेता ऐसे हैं, जो कोई खास कारोबार नहीं करते, लेकिन उनके पास पैसे की कभी कोई कमी नहीं दिखती। कई नेताओं की ओर से चुनाव के मौके पर जो शपथपत्र दाखिल किए जाते हैं, उनसे यही पता चलता है कि उनकी संपत्ति कहीं तेजी से बढ़ती है। आखिर ये नेता बिना कारोबार इतनी तेजी से अमीर कैसे बन जाते है ?अपने देश में भ्रष्टाचार का राजनीति से गहरा संबंध है। इस पर नकेल कसने के लिए जांच एजेंसियों के पास जब तक पर्याप्त अधिकार नहीं होंगे, तब तक वे काले धन के धंधे को रोक नहीं पाएंगी। अब जब उच्चतम न्यायलय ने ईडी को मिले अधिकारों को उचित ठहरा दिया है, तब फिर इस एजेंसी के लिए भी यह आवश्यक हो जाता है कि उसने पांच हजार से अधिक जो मामले दर्ज कर रखे हैं, उन्हें अंजाम तक पहुंचाए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *