www.pressaction.in
लेखा रत्तनाणी एजेंसी: महाराष्ट्र में शिवसेना के उद्धव ठाकरे के नेेतृत्व वाली सरकार को नाटकीय तख्तापलट और बड़े पैमाने पर पलायन के बाद अपदस्थ किए जाने को अब एक महीने से अधिक का समय हो गया है। इस तख्तापलट में नौ मंत्री भी शामिल थे। शिवसेना में कुछ ऐसा हो रहा था जिसके बारे में न तो तत्कालीन मुख्यमंत्री को, न ही उनके राजनेता-बेटे आदित्य या मुखर पार्टी प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद संजय राउत को कोई जानकारी थी। आंतरिक असंतोष को यदि देखा भी गया होगा तो भी उसे स्पष्ट रूप से अनदेखा और अनसुना किया गया था। अब बागी एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी के पैबंद वाले नए गठबंधन को अलग किस्म के विवाद परेशान कर रहे हैं। भाजपा द्वारा निर्देशित और सहायता प्राप्त यह नया गठजोड़ आज असहज है। यह उन लोगों के दबावों से त्रस्त है जिन्होंने कई उम्मीदों और वादों के भरोसे पर पक्ष बदल दिया है, जिन्हें पूरा करना आसान नहीं होगा। इसका एक संकेत यह है कि नई सरकार के गठन के एक महीने बाद भी अभी तक मुख्यमंत्री शिंदे मंत्रिमंडल की घोषणा नहीं कर पाए हैं। 30 जून को जब शिंदे ने पदभार संभाला तभी से महाराष्ट्र को दो सदस्यीय माइक्रो कैबिनेट, सीएम के रूप में बागी शिवसैनिक एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री के रूप में भाजपा के देवेंद्र फडणवीस द्वारा चलाया जा रहा है। यह नया शक्ति संयोजन दबावों को संतुलित करता है और तय करेगा कि तख्तापलट के पुरस्कारों को कैसे वितरित किया जाए। कुछ अन्य असुविधाजनक समायोजन भी हैं पर उनके लिए समय लग रहा है। उनमें से एक भाजपा के पास विधायकों की सबसे बड़ी संख्या का होना है। 288 सदस्यीय सदन में भाजपा के 106 सदस्य हैं। भाजपा जहां शिंदे को सहारा देना चाहती है वही उसका अंतिम लक्ष्य अपने लोगों और उनके सत्ता आधार का निर्माण करना है। इसलिए भाजपा को सत्ता में बड़ी हिस्सेदारी की तलाश होगी। इसके अलावा शिंदे गुट का समर्थन करने वाले 29 निर्दलीय विधायकों को राजनीतिक पदों के साथ समायोजित करना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर होगा। इसके केंद्र में नए मुख्यमंत्री की कमजोर राजनीतिक स्थिति है। उन्हें निश्चित रूप से भाजपा का पर्याप्त समर्थन है, लेकिन उनके पास अपने बारे में बताने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है जिसे वे राज्य के लोगों को बता सकते हैं। अन्य सभी प्रमुख खिलाड़ियों के भी अपने हित हैं। बीजेपी ने शिवसेना को बांटकर तोड़ दिया है। इसके पीछे भाजपा की एक श्हमने तो तुमसे कहा थाश् वाली कहानी है। उन्होंने बाल ठाकरे के बेटे उद्धव को सबक सिखाने की बात कही थी और उन्होंने अपना संकल्प पूरा भी किया। अपदस्थ मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे यह कहानी बता रहे हैं कि कैसे जब वे अस्पताल में सर्जरी के बाद आराम कर रहे थे तब जिस पर उन्होंने भरोसा किया था उन एकनाथ शिंदे ने उनकी पीठ में छुरा घोंप दिया। उनका कहना है कि यह विद्रोह नहीं बल्कि विश्वासघात था जो सबसे खराब काम है। शिवसेना में आम तौर पर इस तरह की घटना नहीं होती। उद्धव ठाकरे के बेटे तथा पर्यावरण के मुद्दों पर अपना समर्थन देते हुए युवाओं और उदारवादियों का बहुत ध्यान आकर्षित करने वाले आदित्य ठाकरे के पास एक और कहानी है। उनकी कहानी नई पीढ़ी की गाथा है जो विनम्रता के साथ जनता के साथ जुड़ने और सीखने के लिए राज्य भर का दौरा कर रहे हैं। इस दौरे की प्रतिक्रियाएं जबरदस्त रही हैं- जिन्हें धोखा दिया गया उनका स्वागत करने के लिए लोग उमड़ रहे हैं। शिंदे एकमात्र व्यक्ति हैं जिसके पास अभी तक एक भी सशक्तकहानी नहीं है कि वह इस स्पष्ट आरोप से बच सकें कि उन्होंने भाजपा को अपना ईमान बेचकर मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल की है। सत्ता की इस दौड़ के विजेताओं के लिए बदतर तथ्य यह है कि भाजपा के स्थानीय नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को भी, जिनका तख्तापलट करने में स्पष्ट हाथ था, अंतिम समय में उपमुख्यमंत्री के रूप में नई सरकार में शामिल होने के लिए श्कहाश् गया था। पहले फडणवीस ने मीडिया से कहा था कि वे सरकार से बाहर रहेंगे लेकिन बाद में शिंदे के डिप्टी के रूप में शामिल हो गए। वे पूर्व मुख्यमंत्री थे जिन्हें पदावनत कर उपमुख्यमंत्री बना दिया गया। पार्टी ने उन्हें ऐसा करने का निर्देश दिया। जो तस्वीर सामने आई उससे साफ नजर आ रहा था कि इस घटनाक्रम में नई दिल्ली शामिल थी जिसने महाराष्ट्र में नाच रही कठपुतलियों की डोर अपने हाथ में रखी थी। सत्ता परिवर्तन की इस घटना ने उस विचार को एक नयी ऊर्जा दी है जिस विचार पर शिवसेना का गठन किया गया था और पहली बार में ही उसने जनता के दिमाग में घर कर लिया था और यहां तक कि इसे लागू करने के लिए अपनाए गए हिंसक तरीकों के कारण शिवसेना पुलिस की नजरों में चढ़ गयी थी। यह विचार था श्भूमि पुत्रोंश् के अधिकारों की राजनीति का। शुरुआती दिनों में पार्टी ने महाराष्ट्रीय युवाओं को बैंकों, रेलवे, अन्य बड़े सार्वजनिक उपक्रमों और निजी क्षेत्र की कंपनियों में नौकरियां दिलाने की मांग को लेकर आंदोलनों का नेतृत्व किया। पार्टी ने बैंक शाखाओं में, कभी-कभी मुंबई में पश्चिमी क्षेत्र के मुख्यालय में, रेलवे भर्ती बोर्डों और अन्य के कार्यालयों में अनगिनत स्थानीय उग्र आंदोलन किए। शिवसेना मराठी युवाओं की नौकरियों के लिए लड़ रही थी। दूसरी ओर, शिवसेना आम आदमी के लिए भी संघर्ष कर रही थी- पानी के कनेक्शन को फिर से शुरू करने के लिए लड़ना, सड़कों को ठीक करना, यहां तक कि जब अन्य लोग सामान्य वस्तुएं और सामान ऊंची कीमतों पर बेच रहे थे तब वे चीजें पार्टी ने कम कीमत पर जनता को उपलब्ध कराई थीं। इस वजह से भाजपा नेता प्रमोद महाजन यह कहने के लिए मजबूर हुए थे कि शिवसेना सही चीजें गलत तरीके से करती है। शिवसेना में बगावत कोई नयी बात नहीं है। पार्टी ने बाल ठाकरे के सामने ही तीन बड़ी बगावतें देखी हैं। इनमें 2005 में बाल ठाकरे के जीवित रहने के समय ही उद्धव के चचेरे भाई राज ठाकरे की बगावत भी शामिल है। पार्टी इस बड़े दिखने वाले झटके से भी बच गई। जिस तरह से ठाकरे ने अपने समर्थकों को संभाला उसके कारण यह एक मामूली सी बात बन कर रह गई। निधन से दो वर्ष पूर्व अपनी 84वीं वर्षगांठ के अवसर पर पार्टी के अखबार सामना के संपादकीय में उन्होंने कहा था-श्मेरे पास राजनीति का रिमोट कंट्रोल है और रिमोट कंट्रोल मेरे पास रहेगा।श् शिवाजी पार्क में उनके अंतिम संस्कार के समय शोकाकुल जनसमुदाय ने दिखाया था कि लोग उन्हें कितना प्यार करते थे। शिवाजी पार्क में शिवसेना की पहली बड़ी रैली जून 1966 में आयोजित की गई थी। बाल ठाकरे द्वारा शिवसेना की स्थापना के तुरंत बाद से शिवाजी पार्क पार्टी के युद्ध का मैदान बन गया। तब बाल ठाकरे के आह्वान पर भारी भीड़ इकठ्ठा हो गई और कहा जाता है कि रैली के दौरान हजारों युवा महाराष्ट्रीय पार्टी की सदस्यता ग्रहण करने के लिए आगे आए। रैली के छह महीने के भीतर 60 शाखा कार्यालय स्थापित किए गए थे और एक साल बाद मुंबई (तब बंबई) से सटे ठाणे नगर निगम के रूप में शिवसेना ने अपना पहला चुनाव जीता। आज शिवसेना को अपने इस अतीत में और लोगों के पास वापस जाना होगा। यही एकमात्र रणनीति है जिसे ठाकरे को अपनाना होगा। आदित्य ठाकरे ने श्शिव संवाद यात्राश् के नाम से राज्य का दौरा शुरू कर दिया है। बाल ठाकरे की शिवसेना की पीठ में छुरा घोंपने और विश्वासघात का संदेश लोगों तक पहुंचाया जा रहा है। ठाकरे पिता-पुत्र का प्रयास लोगों के साथ फिर से जुड़ने, आम लोगों और कार्यकर्ताओं से दूरी और दुर्गमता के आरोपों को खारिज करने और उस संबंध को फिर से स्थापित करने का है जो बाल ठाकरे का मराठी जनता के साथ था। ऐसा करके शिवसेना कहीं न कहीं अपनी जड़ों की ओर वापस जा रही है और साथ ही यह संकेत भी दे रही है कि वह पूरी शक्ति और उत्साह के साथ वापस लड़ेगी। जब सरकार के सभी संसाधनों को उनके खिलाफ इस्तेमाल किया जा रहा है तब इन परिस्थितियों में ऐसा कुछ करना शिवसेना के लिए काफी मुश्किल होगा। फिर भी, उनके पास एक सशक्त कथा है कि किस तरह व्यक्तिगत लाभ के लिए शिंदे ने विश्वासघात किया है। इसका शिवसेना के साथ भावनात्मक संबंध है। ठाकरे इस भावनात्मक संबंध को और मजबूत करने के लिए महाराष्ट्र के भीतरी इलाकों का दौरा करने के लिए निकल पड़े हैं।
Your email address will not be published. Required fields are marked *
Comment *
Name *
Email *
Website
Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.