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डॉलर के मुकाबले रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया। मंगलवार सुबह इंट्रा डे बैंकिंग में रुपया टूटकर 80 रुपये के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार कर गया। इससे शेयर मार्केट में भगदड़ मच सकती है और विदेशी निवेशक तेजी से अपना पैसा बाजार से बाहर निकाल सकते हैं। इससे छोटे निवेशकों को बाजार में तगड़ा झटका लग सकता है और उनके लाखों करोड़ों रुपये बाजार में डूब सकते हैं। वहीं, रुपये के कमजोर होने से भारत में पेट्रोल-डीजल का आयात महंगा हो सकता है। इससे घरेलू बाजार में सामानों का आवागमन महंगा हो सकता है और महंगाई की एक औऱ तगड़ी चोट लग सकती है। सोमवार को ही केंद्र ने आवश्यक वस्तुओं पर पांच फीसदी से लेकर 18 फीसदी तक की जीएसटी दरों का एलान किया था। इससे भी महंगाई दर में बढ़ोतरी हो सकती है।
कुछ ही समय पहले महंगाई की दर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई थी, जिसे कम करने के लिए सरकार ने तेल कंपनियों पर पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटाने के लिए दबाव बनाया था। खाद्य तेलों के आयात पर टैक्स कम कर राहत दी गई थी और तेल कंपनियों से यह लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए कहा गया था। लेकिन बदले हालात में सरकार के वे सभी प्रयास निष्फल साबित हो सकते हैं। आयात महंगा होने से ये सभी वस्तुएं एक बार फिर महंगी हो सकती हैं और आम उपभोक्ताओं को महंगाई की मार झेलनी पड़ सकती है।
इसका सबसे बड़ा नुकसान कार, कंप्यूटर, मोबाइल, स्मार्टवॉच और टीवी जैसी उन उपभोक्ता वस्तुओं पर देखने को मिल सकता है जिन्हें विदेश से आयात किया जाता है, या जिनके पार्ट्स मंगाकर भारत में निर्माण किया जाता है। यानी भारत में जल्द ही कारों की दरों में भी बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है। इससे कोरोना के बाद मंदी से उबरने की कोशिश कर रहे वाहन उद्योग को करारा झटका लग सकता है।
अमेरिका ब्याजदरों में बढ़ोतरी कर रहा है। निवेशकों को भारतीय बाजारों में निवेश से ज्यादा बेहतर और सुरक्षित रिटर्न उन्हें अपने बाजार में मिल रहा है, यही कारण है कि वे भारतीय बाजार से लगातार अपना पैसा निकाल रहे हैं। इस वित्त वर्ष की शुरुआत से अब तक 14 बिलियन डॉलर और पिछले दो महीने में दो बिलियन डॉलर से ज्यादा पैसा निकाला जा चुका है। इसका असर भारतीय रुपये की कमजोरी और डॉलर की मजबूती में दिखाई पड़ रहा है।
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